Sunday, August 21, 2016

14.....श्री दुर्गा माता की आरती(Duraga Ji ki Aarti)

श्री दुर्गा माता की आरती (Durga)            
हिन्दू धर्म में आदि शक्ति दुर्गा का स्थान सर्वोपरि माना गया है। मान्यता है कि दुर्गा जी इस भौतिक संसार में सभी सुखों की दात्री हैं। उनकी भक्ति कर भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। साथ ही साधकों को देवी दुर्गा ही साधनाएं प्रदान करती हैं। मां दुर्गा की साधना में लोग मां की आरती का भी पाठ करते हैं।


दुर्गा जी की आरती (Durga Aarti)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ।| जय अम्बे गौरी ॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को |मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको|| जय अम्बे गौरी ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे| मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे|| जय अम्बे गौरी ॥

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी| मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती| मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति|| जय अम्बे गौरी ॥

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती| मैया महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती|| जय अम्बे गौरी ॥

चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे| मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे|| जय अम्बे गौरी ॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी| मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी|| जय अम्बे गौरी ॥

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों| मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू|| जय अम्बे गौरी ॥

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता| मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता|| जय अम्बे गौरी ॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी| मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती| मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती|| बोलो जय अम्बे गौरी ॥

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे| मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे|| जय अम्बे गौरी ॥

देवी वन्दना

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||

15.....सीता जी की आरती(Sita ji ki aarti)


सीता जी की आरती (Sita ji ki aarti)            
सीता जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह भगवान श्री राम की पत्नी है। सीता जी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं। इनकी आराधना करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा घर में सुख शांति रहती है। तो आइए सीता जी की आरती उतारें और उन्हें प्रसन्न करें।


सीता जी की आरती(Sita ji ki aarti)


सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती।
संगहि सुशोभित लछुमन-राम सब मिलिकय करियनु आरती।।


विपदा विनाशिनि सुखदा चराचर,सीता धिया बनि अयली सुनयना घर
मिथिला के महिमा महान...सब मिलिकय करियनु आरती।।सीता बिराजथि...


सीता सर्वेश्वरि ममता सरोवर,बायाँ कमल कर दायाँ अभय वर
सौम्या सकल गुणधाम.....सब मिलिकय करियनु आरती।। सीता बिराजथि...


रामप्रिया सर्वमंगल दायिनि,सीता सकल जगती दुःखहारिणि
करथिन सभक कल्याण...सब मिलिकय करियनु आरती।। सीता बिराजथि...


सीतारामक जोड़ी अतिभावन,नैहर सासुर कयलनि पावन
सेवक छथि हनुमान...सब मिलिकय करियनु आरती।।सीता बिराजथि...


ममतामयी माता सीता पुनीता,संतन हेतु सीता सदिखन सुनीता
धरणी-सुता सबठाम...सब मिलिकय करियनु आरती ।। सीता बिराजथि...


शुक्ल नवमी तिथि वैशाख मासे,’चंद्रमणि’ सीता उत्सव हुलासे
पायब सकल सुखधाम...सब मिलिकय करियनु आरती।।

सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती।।।

16.....संतोषी माता की आरती(Santoshi Mata Ji Ki Aarti)


संतोषी माता की आरती (Santoshi Mata Ji Ki Aarti)            
संतोषी माता हिन्दूओं की एक अहम देवी मानी जाती हैं। मान्यता है कि संतोषी माता की उपासना से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए निम्न आरती का पाठ किया जाता है।



संतोषी माता की आरती (Shri Santoshi Mata Ji Ki Aarti)

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥
जय सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥

जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥
जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥

जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥

जय मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥
जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥

जय दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए ।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥
जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥

जय शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
जय संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे ।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥

17.....श्री राधा जी की आरती(Radha ji ki aarti)


श्री राधा जी की आरती (Radha ji ki aarti)            
राधा जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू धर्म में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा जी का ही नाम लिया जाता है। कई लोग मानते हैं कि राधा जी विष्णु जी की अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। राधा-कृष्ण को शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं। इनकी भक्ति से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। तो आइए राधा कृष्ण की आरती उतारे-



श्री राधा जी की आरती (Radhaji Aarti )

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण
श्री राधा कृष्णाय नमः ..


घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा
पट पीताम्बर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण .
जुगल प्रेम रस झम झम झमकै
श्री राधा कृष्णाय नमः ..


राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण .
मंगल मूरति मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ..

18.....काली माता की आरती(Kali Mata)


काली माता की आरती (Kali Mata)            
हिंदू मान्यतानुसार काली जी का जन्म राक्षसों के विनाश के लिए हुआ था। आदि शक्ति भगवती का रूप माने जाने वाली काली माता को बल और शक्ति की देवी माना जाता है। इनकी आराधना से मनुष्य के सभी भय दूर हो जाते हैं। मां काली जी की आरती से उनकी वंदना की जाती है।





कालीमाता की आरती (Kali Mata Ji Aarti)

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन।।1।।

जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।2।।

बुद्धि विधाता तू जग माता ,मेरा कारज सिद्व रे।
चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे।।3।।

जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे।
गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरेमाता।।4।।

होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करेशुक्र सुखदाई सदा।
सहाई संत खडे जयकार करे ।।5।।

ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडेअटल सिहांसन।
बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरेवार शनिचर।।6।।

कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे।।7।।

शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे ,महिषासुर को पकड दले ।
आदित वारी आदि भवानी ,जन अपने को कष्ट हरे ।।8।।

कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे।।9।।

सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता ,जन की अर्ज कबूल करे ।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।।10

सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे।
दर्शन पावे मंगल गावे ,सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।।11।।

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे।।12।।

जय जननी जय मातु भवानी , अटल भवन मे राज्य करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे।।13।।


19.....चामुण्डा देवी की आरती(Chamunda Devi Aarti)


चामुण्डा देवी की आरती (Chamunda Devi)            
हिन्दू मान्यतानुसार देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से चामुण्डा देवी प्रमुख हैं। दुर्गा सप्तशती में चामुण्डा देवी की कथा का वर्णन किया है। मान्यता है कि चामुण्डा देवी की साधना करने से मनुष्य को परम सुख की प्राप्ति होती है। चामुण्डा देवी की साधना में दुर्गा जी या अम्बे मां की आरती या चालीसा का ही प्रयोग किया जाता है:


चामुण्डा देवी जी की आरती (Chamunda Devi Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी। निशिदिन तुमको ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥ जय अम्बे
माँग सिन्दूर विराजत, टीको, मृगमद को। उज्जवल से दोउ नयना, चन्द्रबदन नीको॥ जय अम्बे

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे। रक्त पुष्प गलमाला, कंठ हार साजे॥ जय अम्बे
हरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी।सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दु:ख हारी॥ जय अम्बे

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम जोती॥ जय अम्बे
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती। धूम्र-विलोचन नयना, निशदिन मदमाती॥ जय अम्बे

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे। मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भय दूर करे॥ जय अम्बे
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों। बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु॥ जय अम्बे
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ जय अम्बे
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे

20.....श्री सरस्वती प्रार्थना(Shri Saraswati Prarthana)


श्री सरस्वती प्रार्थना (Shri Saraswati Prarthana)            
मान्यता है कि ज्ञान की देवी श्री सरस्वती जी की अराधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। सरस्वती जी की पूजा में निम्न प्रार्थना का प्रयोग होता है:


श्री सरस्वती प्रार्थना (Shri Saraswati Prathana )

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

(जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के
फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह
धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं,
जिनके हाथ में वीणादण्ड शोभायमान है,
जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया
है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं
द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूरण जड़ता
और अज्ञान को दूर कर देने वाली
माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥)

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां
जगद्व्यापिनींवीणापुस्तकधारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं
पद्मासने संस्थिताम्वन्दे तां परमेश्वरीं
भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥

(शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्में व्याप्त,
आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं
चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली,
सभी भयों से भयदान देने वाली,
अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा,
पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली
और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली,
सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा
(सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥

21.....लक्ष्मी जी की आरती(Goddess Laxmi)

लक्ष्मी जी की आरती (Goddess Laxmi)            
धन-वैभव की देवी लक्ष्मी जी को हिन्दू धर्म में आदि शक्ति का रूप माना जाता है। विष्णुप्रिया लक्ष्मी जी की श्रद्धा पूर्वक श्री आराधना करने से मनुष्य को धन और स्मृद्धि की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी का नित ध्यान करने के लिए विभिन्न मंत्रों के साथ आरती का भी पाठ किया जाता है।





लक्ष्मीजी की आरती (Laxmi Mata Aarti)

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी |
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता |
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता |
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता|
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता|
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता |
उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता |
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

22.....श्री राणी सतीजी की आरती(rani sati mata)

श्री राणी सतीजी की आरती (rani sati mata)            







श्री राणी ​​सतीजी की आरती (Shree Rani Satiji ki Aarti)

ॐ जय श्री राणी सती माता , मैया जय राणी सती माता ,
अपने भक्त जनन की दूर करन विपत्ती ||
अवनि अननंतर ज्योति अखंडीत , मंडितचहुँक कुंभा
दुर्जन दलन खडग की विद्युतसम प्रतिभा ||

मरकत मणि मंदिर अतिमंजुल , शोभा लखि न पडे,
ललित ध्वजा चहुँ ओरे , कंचन कलश धरे ||
घंटा घनन घडावल बाजे , शंख मृदुग घूरे,
किन्नर गायन करते वेद ध्वनि उचरे ||

सप्त मात्रिका करे आरती , सुरगण ध्यान धरे,
विविध प्रकार के व्यजंन , श्रीफल भेट धरे ||
संकट विकट विदारनि , नाशनि हो कुमति,
सेवक जन ह्रदय पटले , मृदूल करन सुमति,
अमल कमल दल लोचनी , मोचनी त्रय तापा ||

त्रिलोक चंद्र मैया तेरी ,शरण गहुँ माता ||
या मैया जी की आरती, प्रतिदिन जो कोई गाता,
सदन सिद्ध नव निध फल , मनवांछित पावे ||

23.....सरस्वती माता की आरती(Sraswati mata Ji ki Aarti)


सरस्वती माता की आरती (saraswati)            
मान्यता है कि ज्ञान की देवी श्री सरस्वती जी की आराधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार मं सरस्वती ना केवल ज्ञान की देवी हैं बल्कि संगीत, कला आदि की भी देवी हैं। इनकी पूजा करने से मनुष्य के जीवन से अज्ञानता का अंधेरा दूर होता है। सरस्वती जी की पूजा में निम्न आरती का प्रयोग होता है:


श्री सरस्वती आरती (Shri Saraswati Aarti)

कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
दगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
चंद्रवदनि पदमासिनी , घुति मंगलकारी | सोहें शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
बायेँ कर में वीणा ,दायें कर में माला | शीश मुकुट मणी सोहें ,गल मोतियन माला ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
देवी शरण जो आयें ,उनका उद्धार किया पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
विद्या ज्ञान प्रदायिनी , ज्ञान प्रकाश भरो | मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता | धुप ,दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता , भव से उद्धार करो ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता | माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी ,सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥

सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
 सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥
 जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |

24.....गायत्री माता की आरती(Goddess Gayatri)


गायत्री माता की आरती (Goddess Gayatri)            
माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। माता गायत्री की पूजा में निम्न आरती का भी विशेष प्रयोग किया जाता है।



गायत्री माता की आरती (Gaytri Mata Aarti )

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री।
दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥

ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥

भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥

कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥

जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥

स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥

25.....पार्वती जी की आरती(Parvati ji ki aarti)


पार्वती जी की आरती (Parvati ji ki aarti)            
हिंदू मान्यतानुसार पार्वती जी ही देवी भगवती हैं। यह भगवान शंकर की अर्धांगिनी हैं। दुर्गा, काली आदि इन्हीं माता के रूप माने जाते हैं। पार्वती जी बड़ी दयालु, कृपालु और करुणामयी हैं। इनकी आराधना करने भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते है तथा घर में सुख और शांति का वास होता है। तो आइए देवी की आरती कर उन्हें प्रसन्न करें।




पार्वती जी की आरती(Parvati ji ki aarti)

जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता ।।

अरिकुलापदम बिनासनी जय सेवक्त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता ।।

सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा ।।

सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता ।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा ।।

सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता,
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता ।।

देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता ।।

श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता ,
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।।

26.....देवी अन्नपूर्णा की आरती(Devi annapoorna)


देवी अन्नपूर्णा की आरती (Devi annapoorna)            
देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की देवी हैं। देवी अन्नपूर्णा धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। इन्हें “अन्न की पूर्ति“ करने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा भक्तों की भूख शांत करती हैं तथा जो इनकी आराधना करता है उसके घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है।





आरती देवी अन्नपूर्णा जी की (Annapoorana Devi Aarti)

बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम...

जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार...

प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम।
सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार...

चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार...

देवि देव! दयनीय दशा में दया-दया तब नाम।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार...

श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार...

27.....श्री हनुमानजी की आरती(Shri Hanuman Ji ki Aarti)

  श्री हनुमानजी की आरती (Hanuman)            
हिंदू धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाने वाले हनुमान जी का स्मरण करने से सभी डर दूर हो जाते हैं। हनुमान जी की पूजा-अर्चना में हनुमान चालीसा, मंत्र और आरती का पाठ किया जाता है।


हनुमान जी की आरती (Shri Hanuman Ji Ki Aarti)

मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ||
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||

आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सिया सुधी लाये ॥

लंका सी कोट संमदर सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥

लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे | आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥

बायें भुजा असुर दल मारे | दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥

कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥

लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

28.....श्री कबीर जी की आरती (Shri Kabir Ji Ki Aarti)









श्री कबीर जी की आरती (Shri Kabir Ji Ki Aarti)

सुन संधिया तेरी देव देवाकर,अधिपति अनादि समाई |
सिंध समाधि अंतु नहीं पायलागि रहै सरनई ||
लेहु आरती हो पुरख निरंजनु,सतगुरु पूजहु भाई
ठाढ़ा ब्रह्म निगम बीचारै,अलख न लिखआ जाई ||
ततुतेल नामकीआ बाती, दीपक देह उज्यारा |
जोति लाइ जगदीश जगाया,बुझे बुझन हारा ||
पंचे सबत अनाहद बाजे,संगे सारिंग पानी |
कबीरदास तेरी आरती कीनी,निरंकार निरबानी ||
याते प्रसन्न भय हैं महामुनि,देवन के जप में सुख पावै |
यज्ञ करै इक वेद रहै भवताप हरै,मिल ध्यान लगावै ||
झालर ताल मृदंग उपंग रबा,बलीए सुरसाज मिलावै |
कित्रर गंधर्व गान करै सुर सुन्दर,पेख पुरन्दर के बली जावै |
दानति दच्छन दै कै प्रदच्छन,भाल में कुंकुम अच्छत लावै ||
होत कुलाहल देव पुरी मिल,देवन के कुल मंगल गावैँ |
हे रवि हे ससि हे करुणानिधि,मेरी अबै बिनती सुन लीजै ||
और न मांगतहूँ तुमसे कछु चाहत,हौं चित में सोई कीजे |
शस्त्रनसों अति ही रण भीतर,जूझ मरौंतउ साँचपतीजे ||
सन्त सहाई सदा जग माइ,कृपाकर स्याम इहि है बरदीजे |
पांइ गहे जबते तुमरे तबते कोउ,आंख तरे नही आन्यो ||
राम रहीम पुरान कुरान अनेक,कहै मत एक न मान्यो ||
सिमरत साससत्रबेदस बैबहु भेद,कहै सब तोहि बखान्या |
श्री असिपान कृपा तुमरी करि,मैं न कह्यो हम एक न जान्यो कह्यो||

29.....श्री झुलेलाल की आरती(ShriJhulelal Ki Aarti)








श्री झुलेलाल की आरती(ShriJhulelal Ki Aarti)

ॐ जय दूलह देवा, साईं  जय दूलह देवा |
पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा || ॐ जय…
तुहिंजे दर दे केई सजण अचनि  सवाली |
 दान वठन सभु दिलि सां कोन दिठुभ खाली || ॐ जय…
अंधड़नि  खे दिनव अखडियूँ  – दुखियनि  खे दारुं |
पाए मन जूं मुरादूं सेवक कनि थारू || ॐ जय…
फल फूलमेवा सब्जिऊ पोखनि मंझि पचिन |
तुहिजे महिर मयासा  अन्न बि आपर अपार थियनी || ॐ जय…
ज्योति जगे थी जगु में लाल तुहिंजी लाली |
अमरलाल अचु मूं वटी हे विश्व संदा वाली || ॐ जय…
जगु जा जीव सभेई पाणिअ बिन प्यासा|
जेठानंद आनंद कर, पूरन करियो आशा || ॐ जय…


30.....आरती श्री विश्वकर्मा जी की(Vishwakarma Ji Ki Aarti)
 








 आरती श्री विश्वकर्मा जी की(Vishwakarma Ji Ki Aarti)
 
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||

आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||

ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||

श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जय श्री विश्वकर्मा.
 
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||

आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||

ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||

श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जय श्री विश्वकर्मा.
 

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