Sunday, August 21, 2016

31.....जय मंगला गौरी माता(Aarti mangla gouri ki)

 









मां मंगला गौरी की आरती(Aarti mangla gouri ki)


जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

32.....पंचमुखी हनुमान आरती(panch mukhi balaji)

   






पंचमुखी हनुमान आरती(panch mukhi balaji)

 श्री नारायण जी व्यास कृत
प्रस्तुति :राजशेखर व्यास
'श्री पंचमुखी महाभगवद्धनुमदारती'
1.

जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।
प्रथमहि वानर वदन विराजे।।2।।
छबि बल काम कोट तंहराजे।।2।।
पशुपति शंभु भवेश समाना।।1।।

जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।
अतुलित बल तनु तेज विराजे।।2।।
रवि शशि कोट तेज छवि राजे।।2।।
रघुवर भक्त लसत तपखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

अञ्जनि पुत्र पवन सुत राजे।।2।।
महिमा शेष कोटि कहि राजे।।2।।
रघुवर लक्ष्मण करत बखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

दिग मंडल यश वृन्द विराजे।।2।।
अद्भुत रूप राम वर काजे।।2।।
तनुधर पंचमुखी हनुमाना।।3।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

भक्त शिरोमणि राज विराजे।।2।।
भक्त हृदय मानस वर राजे।।2।।
ईश्वर अव्यय आद्य समाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

2

दूसर मुख नरहरी1 विराजे।।2।।
शोभा धाम भक्त किय राजे।।2।।
अनुपम ब्रह्मरूप भगवाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

1. सिंह,

3.

तीसर तनखग`1 राज विराजे।।2।।
महिमा वेद बखानत राजे।।2।।
हनुमत अच्युत हरि सुखखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

4.

सूर्यरूप वाराह`2 विराजे।।2।।
वेद तत्व परमेश्वर राजे।।2।।
जय दाता भिलषित वर दाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

5.

ऊर्ध्व हयानन3 राज विराजे।।2।।
सद्ज्ञानाग्र वरद विभुराजे।।2।।
धन्य-धन्य दरशन भगवाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

सर्वाभरण विचित्र विराजे।।2।।
कुण्डल मुकुट विभूषण राजे।।2।।
दशकर पंकज आयुध माना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

दिव्य वदनतिथि नयन विराजे।।2।।
शब सुन्दर आसन विधि राजे।।2।।
युगल चरण नखद्युति हरखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

महाराज शुभ धाम विराजे।।2।।
रोम-रोम रघुराज विराजे।।2।।
मनहर सुखकर गात निधाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

जय दायक वरदायक माना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

1. गरूड़, 2. शूकर, 3. अश्व

6.

।। कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्र हारम् ।।

।। सदा वसंतं हृदयार विन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि ।।1।।

।। श्री पंचवक्त्रं रघुराज दूतम् ।।
वैदेहि भक्तं कपिराज मित्रम् ।।

।। सदा वसन्तं प्रभुलक्ष्मणाग्रे।।
कपिं च सीताप्त वरं नमामि ।।2।।

।। श्रीराम दूतं करुणावतारम् ।।
।। संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् ।।

।। सदा वसन्तं प्रभुलक्ष्मणाग्रे।।
।। कपि प्रभक्तया साहितं नमामि ।।3।।

।। त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।।
।। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।।

।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।।
।। त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।4।।

।। कायेन वाचा मनसोन्द्रियैर्वा ।।
।। बुध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावात् ।।

।। करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।।
।। नारायणायेति समर्पयामि ।।5।।

।। ''जय-2 जय-2 राजा राम'' ।।
।। ''पतित पावन सीताराम'' ।।5।।

''आरार्तिकं समर्पयामि''
शीतलीकरणम।।
असिक्तोद्धरणम्।।

33.....मां नर्मदा की आरती (maa narmada)
   









मां नर्मदाजी की पावन आरती

ॐ जय जगदानन्दी, मैया जय आनंद कन्दी।
ब्रह्मा हरिहर शंकर, रेवा शिव हर‍ि शंकर रुद्रौ पालन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (1)

देवी नारद सारद तुम वरदायक, अभिनव पदण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि...
शारद पदवाचन्ती। ॐ जय जगदानन्दी

देवी धूमक वाहन राजत, वीणा वाद्यन्ती।
झुमकत-झुमकत-झुमकत, झननन झमकत रमती राजन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (2)

देवी बाजत ताल मृदंगा, सुर मण्डल रमती।
तोड़ीतान-तोड़ीतान-तोड़ीतान, तुरड़ड़ रमती सुरवन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (3)

देवी सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर, सेवत रेवा शंकर तुम भट मेटन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (4)

मैयाजी को कंचन थार विराजत, अगर कपूर बाती।
अमर कंठ में विराजत घाटन घाट बिराजत, कोटि रतन ज्योति। ॐ जय जगदानन्दी (5)

मैयाजी की आरती निशदिन पढ़ गा‍वरि, हो रेवा जुग-जुग नरगावे भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍ि नंद स्वामी मनवांछित पावे। ॐ जय जगदानन्दी (6)

34.....जय जय तुलसी माता (tulshi mata aarti)
   











तुलसी माता की आरती (tulshi mata aarti)

सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।

बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।

35.....महावीर स्वामी की आरती (mahaveer swami aarti)
   











महावीर स्वामी की आरती (mahaveer swami aarti)

जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥ ॥ ओम जय .....॥



सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ॥1 ओम जय .....॥

आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥2 ओम जय .....॥

जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।
हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ॥3 ओम जय .....॥

इह विधि चांदनपुर में अतिशय दरशायौ।
ग्वाल मनोरथ पूर्‌यो दूध गाय पायौ ॥4 ओम जय .....॥

प्राणदान मन्त्री को तुमने प्रभु दीना।
मन्दिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥5 ।ओम जय .....॥

जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ॥6 ओम जय .....॥

जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवै।
होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावै ॥7 ओम जय .....॥

निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज़्योति जरै।
हरि प्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ॥8 ओम जय .....॥


36.....अहोई माता की आरती (ahoi mata aarti)

  










अहोई माता की आरती (ahoi mata aarti)

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।



ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।

माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।

श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।


37.....बाहुबली भगवान क‍ी आरती (bahubali aarti)
   







बाहुबली भगवान (bahubali bagwan) 

चंदा तू ला रे चंदनिया, सूरज तू ला रे किरणां… (2)
तारा सू जड़ी रे थारी आरती रे बाबा नैना संवारूं… (2)
थारी आरती … चंदा तू…॥

आदिनाथ का लाड़ला जी नंदा मां का जाया… (2)
राजपाट ने ठोकर मारी, छोड़ी सारी माया… (2)
बन ग्या अहिंसाधारी, बाहुबली अवतारी
तारा सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना संवारूं … चंदा तू…॥

तन पे बेला चढ़ी नाथ के, केश घोंसला बन गया… (2)
अडिग हिमालय ठाड्या तनके, टीला-टीला चमक्या… (2)
थारी तपस्या भारी, तनमन सब थापे वारी
तारां सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना संवारूं … चंदा तू…॥

जय-जय जयकारा गावें थारा, सारा ये संसारी… (2)
मुक्ति को मार्ग बतलायो, घंण-घंण ए अवतारी… (2)

‘नेमजी’ चरणों में आयो, चरणां में शीश झुकायो
जुग-जुग उतारे थारी आरती रे, रे बाबा नैना संवारूं॥

38.....भगवान आदिनाथ की आरती (aaditay nath)
   








भगवान आदिनाथ की आरती(aaditay nath)

आरती उतारूं आदिनाथ भगवान की
माता मरुदेवि पिता नाभिराय लाल की
रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी
आरती हो बाबा, आरती हो,



प्रभुजी हमसब उतारें थारी आरती
तुम धर्म धुरन्धर धारी, तुम ऋषभ प्रभु अवतारी
तुम तीन लोक के स्वामी, तुम गुण अनंत सुखकारी

इस युग के प्रथम विधाता, तुम मोक्ष मार्म के दाता
जो शरण तुम्हारी आता, वो भव सागर तिर जाता
हे… नाम हे हजारों ही गुण गान की…
तुम ज्ञान की ज्योति जमाए, तुम शिव मारग बतलाए
तुम आठो करम नशाए, तुम सिद्ध परम पद पाये

मैं मंगल दीप सजाऊं, मैं जग-मग ज्योति जलाऊं

मैं तुम चरणों में आऊं, मैं भक्ति में रम जाऊं
हे झूम-झूम-झूम नाचूं करूं आरती।
आरती उतारूं आदिनाथ भगवान की।

39.....शीतला माता की आरती (sitala mata)
     











श्री शीतला आरती (sitala mata)

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता...



रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,

ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता...



विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता...



इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता...



घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता...



ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता...



जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता...



रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता...



बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता...



शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता...



दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,

भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।

जय शीतला माता...।

40.....भगवान चित्रगुप्त की आरती (chitargupta maharaj)








भगवान चित्रगुप्त की आरती (chitargupta maharaj)

श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी।
पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥



सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे।
श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥

भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला।
शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥

अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै।
कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥

नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला।
आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा॥

भक्ति भाव से यह आरती जो कोई गावे।
मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे॥

41.....महाराजा अग्रसेन की आरती (agrasen maharaj)
     











महाराजा अग्रसेन की आरती  (agrasen maharaj)

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।।
जय श्री अग्र हरे...

आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।।
जय श्री अग्र हरे...


केसरिया ध्वज फहरे, छात्र चंवर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।।
जय श्री अग्र हरे...

अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आए!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाए।।
जय श्री अग्र हरे...

सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रुपए की रीति, प्रकट करे ममता।।
जय श्री अग्र हरे...

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।।
जय श्री अग्र हरे...

अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाए!
कहत त्रिलोक विनय से सुख सम्पत्ति पाए।।
जय श्री अग्र हरे... ।


42.....श्री परशुराम जी  (parsuram ji)

     





श्री परशुराम जी  (parsuram ji)

शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की॥

रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।

कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥

अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥



नारायण अवतार सुहावन।

प्रगट भए महि भार उतारन॥

क्रोध कुंज भव भय विराम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥



परशु चाप शर कर में राजे।

ब्रम्हसूत्र गल माल विराजे॥

मंगलमय शुभ छबि ललाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥



जननी प्रिय पितु आज्ञाकारी।

दुष्ट दलन संतन हितकारी॥

ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥



परशुराम वल्लभ यश गावे।

श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥

छहहिं चरण रति अष्ट याम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥


43.....शारदा माता की आरती (sharda mata)










शारदा माता की आरती (sharda mata)

हे शारदे! कहां तू वीणा बजा रही है।

किस मंजुज्ञान से तू जग को लुभा रही है।


किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,

विनती नहीं हमारी क्यों मात सुन रही है।


हम दीन बाल कब से विनती सुना रहे हैं,

चरणों में तेरे माता हम सिर नवा रहे हैं।


अज्ञान तुम हमारा मां शीघ्र दूर कर दे,

द्रुत ज्ञान शुभ्र हम में मां शारदे तू भर दे।


बालक सभी जगत के सुत मात है तिहारे,

प्राणों से प्रिय तुझे है हम पुत्र सब दुलारे।


हमको दयामई ले गोद में पढ़ाओ,

अमृत जगत का हमको मां शारदे पिलाओ।


ह्रदय रूपी पलक में करते है आहो जारी,

हर क्षण ढूंढते है माता तेरी सवारी।


मातेश्वरी तू सुन ले सुंदर विनय हमारी,

करके दया तू हरले बाधा जगत की सारी।


44.....श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती  (bhagwan dhanvantari)












श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती  (bhagwan dhanvantari)

जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।

जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।


तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।

देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।


आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।

सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।


भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।

आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।


तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।

असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।


हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।

वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।


धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।

रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।


45.....एकादशी की पावन आरती (eka dashi)
   


संपूर्ण साल में 24 एकादशी व्रत आते हैं। इन 24 एकादशी को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र और पुण्यदायिनी माना गया है। अधिक मास में दो एकादशी बढ़ने से यह 26 हो जाती है। सामान्यत: 24 एकादशी का महत्व है। प्रस्तुत है एकादशी की आरती। इस आरती में सभी एकादशियों के नाम शामिल है।


एकादशी की पावन आरती (eka dashi)

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।


तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।


मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।


पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।


नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।


विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।


चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।


शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।


योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।


कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।


अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।


पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।


देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।


परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।


जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।


46.....श्री बद्रीनाथजी की आरती (badrinath ji ki aarti)











श्री बद्रीनाथजी की आरती (badrinath ji ki aarti)

पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम्

निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम्।

शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम्।

जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम्।

सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम्।

श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेश्वरम्।

राजयुधिष्ठिर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

श्री बद्रजी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम्।

कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम् ‍।


47.....श्री केदारनाथजी की आरती (Kedarnath)








श्री केदारनाथजी की आरती (Kedarnath)

जय केदार उदार शंकर, मन भयंकर दुख हरम्,

गौरी गणपति स्कंद नंदी, श्री केदार नमाम्यहम्।


शैली सुंदर अति हिमालय, शुभ मंदिर सुंदरम्,

निकट मंदाकिनी सरस्वती जय केदार नमाम्यहम्।


उदक कुंड है अधम पावन रेतस कुंज मनोहरम्,

हंस कुंड समीप सुंदर जै केदार नमाम्यहम्।


अन्नपूर्णा सहं अर्पणा काल भैरव शोभितम्,

पंच पांडव द्रोपदी सम जै केदार नमाम्यहम्।


शिव दिगंबर भस्मधारी अर्द्धचंद्र विभुषितम्

शीश गंगा कंठ फणिपति जै केदार नमाम्यहम्।


कर त्रिशूल विशाल डमरू ज्ञान गान विशारद्‍,

मदमहेश्वर तुंग ईश्वर रूद्र कल्प गान महेश्वरम्।


पंच धन्य विशाल आलय जै केदार नमाम्यहम्,

नाथ पावन है विशालम् पुण्यप्रद हर दर्शनम्,


जय केदार उदार शंकर पाप ताप नमाम्यहम्।

48.....श्री गंगाजी की आरती (ganga maa)








श्री गंगाजी की आरती (ganga maa)

ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता।

जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।

ॐ जय गंगे माता...


चन्द्र-सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता।

शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।

ॐ जय गंगे माता...


पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।

कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।

ॐ जय गंगे माता...


एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता।

यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता।

ॐ जय गंगे माता...

49.....गंगा मैया की आरती (ganga maa)










गंगा आरती (ganga maa)
     
जय गंगा मैया मां जय सुरसरी मैया।

भवबारिधि उद्धारिणी अतिहि सुदृढ़ नैया।।


हरी पद पदम प्रसूता विमल वारिधारा।

ब्रम्हदेव भागीरथी शुचि पुण्यगारा।।


शंकर जता विहारिणी हारिणी त्रय तापा।

सागर पुत्र गन तारिणी हारिणी सकल पापा।।


गंगा-गंगा जो जन उच्चारते मुखसों।

दूर देश में स्थित भी तुरंत तरन सुखसों।।


मृत की अस्थि तनिक तुव जल धारा पावै।

सो जन पावन होकर परम धाम जावे।।


तट-तटवासी तरुवर जल थल चरप्राणी।

पक्षी-पशु पतंग गति पावे निर्वाणी।।


मातु दयामयी कीजै दीनन पद दाया।

प्रभु पद पदम मिलकर हरी लीजै माया।।



आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।

दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता।

ॐ जय गंगे माता...

ॐ जय गंगे माता...।।
 

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