Monday, August 22, 2016

50.....शनिवार व्रत की आरती












शनिवार व्रत की आरती

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।

वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥


पहली आरती प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश नख उदर विदारे॥


दूसरी आरती वामन सेवा।

बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥


तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।

सहसबाहु के भुजा उखारे॥


चौथी आरती असुर संहारे।

भक्त विभीषण लंक पधारे॥


पांचवीं आरती कंस पछारे।

गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥


तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।

हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥

51..... हे शारदे मां....मां सरस्वती की आरती








मां सरस्वती की आरती

हे शारदे मां, हे शारदे मां अज्ञानता से हमें तार दे मां


तू स्वर की देवी है संगीत तुझसे,

हर शब्द तेरा है हर गीत तुझसे,

हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे,

तेरी शरण हम, हमें प्यार दे मां

52.....शिवजी की आरती : ॐ जय गंगाधर









शिवजी की आरती : ॐ जय गंगाधर

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥


कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।

गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥


कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।

रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥


तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।

तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥


क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥


बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।

किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥


धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।

क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥


रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।

चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥


तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।

अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥


कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।

त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥


सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।

डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥


मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।

वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥


सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।

इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥


शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।

नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥


अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।

अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥


ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।

रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥


संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।

शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

53.....श्री सोमवार की आरती







श्री सोमवार की आरती

आरती करत जनक कर जोरे।

बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥


जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए।

सब भूपन के गर्व मिटाए॥


तोरि पिनाक किए दुइ खंडा।

रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥


आई सिय लिए संग सहेली।

हरषि निरख वरमाला मेली॥


गज मोतियन के चौक पुराए।

कनक कलश भरि मंगल गाए॥


कंचन थार कपूर की बाती।

सुर नर मुनि जन आए बराती॥


फिरत भांवरी बाजा बाजे।

सिया सहित रघुबीर विराजे॥


धनि-धनि राम लखन दोउ भाई।

धनि दशरथ कौशल्या माई॥


राजा दशरथ जनक विदेही।

भरत शत्रुघन परम सनेही॥


मिथिलापुर में बजत बधाई।

दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥


54.....रविवार आरती





रविवार आरती

कहुं लगि आरती दास करेंगे,

सकल जगत जाकि जोति विराजे।

सात समुद्र जाके चरण बसे,

काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।


कोटि भानु जाके नख की शोभा,

कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम।

भार अठारह रामा बलि जाके,

कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।


छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,

कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।

‍अमित कोटि जाके बाजा बाजें,

कहा भयो झनकारा करे हो राम।


चार वेद जाके मुख की शोभा,

कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।

शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,

नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।


हिम मंदार जाके पवन झकोरें,

कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।

लख चौरासी बन्ध छुड़ाए,

केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।


55.....श्री मंगलवार की आरती










श्री मंगलवार की आरती

आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

जाके बल से गिरिवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके।


अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई।

दे वीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाई।


लंका सी कोट समुद्र सी खाई, जात पवन सुत बार न लाई।

लंका जारि असुर सब मारे, राजा राम के काज संवारे।


लक्ष्मण मूर्छित परे धरनि पे, आनि संजीवन प्राण उबारे।

पैठि पाताल तोरि यम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे।


बाएं भुजा सब असुर संहारे, दाहिनी भुजा सब सन्त उबारे।

आरती करत सकल सुर नर नारी, जय जय जय हनुमान उचारी।


कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजनी माई।

जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।

लंका विध्वंस किसो रघुराई, तुलसीदस स्वामी कीर्ति गाई।


56.....श्री बृहस्पतिवार की आरती
     





श्री बृहस्पतिवार की आरती

जय-जय आरती राम तुम्हारी,

राम दयालु भक्त हितकारी।


जनहित प्रगटे हरि ब्रजधारी,

जन प्रह्लाद, प्रतिज्ञा पाली।


द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो,

गज के काज पयादे धायो।


दस सिर बीस भुज तोरे,

तैंतीस कोटि देव बंदि छोरे


छत्र लिए सिर लक्ष्मण भ्राता,

आरती करत कौशल्या माता।


शुक्र शारद नारद मुनि ध्यावें,

भरत शत्रुघ्न चंवर ढुरावैं।


राम के चरण गहे महावीरा,

ध्रुव प्रह्लाद बालिसुत वीरा।


लंका जीती अवध हर‍ि आए,

सब संतन मिली मंगल गाए।


सीता सहित सिंहासन बैठे,

रामानंद स्वामी आरती गाए।


57.....बुधवार की आरती










बुधवार की आरती

आरती युगल किशोर की कीजै,

तन-मन-धन, न्योछावर कीजै। टेक।


गौर श्याम सुख निरखत रीझै,

हरि को स्वरूप नयन भरी पीजै।


रवि शशि कोटि बदन की शोभा।

ताहि निरिख मेरो मन लोभा।


ओढ़े नील पीत पट सारी,

कुंज बिहारी गिरवर धारी।


फूलन की सेज फूलन की माला,

रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।


मोर-मुकुट मुरली कर सोहे,

नटवर कला देखि मन मोहे।


कंचन थार कपूर की बाती,

हरि आए निर्मल भई छाती।


श्री पुरुषोत्तम गिरवरधारी,

आरती करें सकल ब्रजनारी।


नंदनंदन ब्रजभान किशोरी,

परमानंद स्वामी अविचल जोरी।


58.....श्री शुक्रवार की आरती










श्री शुक्रवार की आरती

आरती लक्ष्मण बालजती की,

असुर संहारन प्राणपति की। टेक।


जगमग ज्योत अवधपुरी राजे,

शेषाचल पे आप बिराजै।


घंटा ताल पखावज बाजै,

कोटि देव मुनि आरती साजै।


क्रीट मुकुट कर धनुष विराजै,

तीन लोक जाकी शोभा राजै।


कंचन थार कपूर सुहाई,

आरती करत सुमित्रा माई।


आरती कीजै हरि की तैसी,

ध्रुव प्रह्लाद वि‍भीषण जैसी।


प्रेम मगन होय आरती गावैं,

बसि बैकुंठ बहुरि नहिं आवै।


भक्ति हेतु लाड़ लड़वै,

जब घनश्याम परम पद पावै।


59.....भैरव आरती









भैरव आरती

भगवान श्री कालभैरव की आरती


जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।


तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।


वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।

महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।


तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।

चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।


तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।

कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।


पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।

बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।


बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।

कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।

60.....श्री गुरुनानक देवजी की आरती











श्री गुरुनानक देवजी की आरती

गगन में थालु रवि चंदु दीपक।

बने तारिका मण्डल जनक मोती।।


धूपमल आनलो पवणु चवरो करे।

सगल बनराई फूलंत जोति ।।


कैसी आरती होई भवखंडना तेरी आरती।

अनहता सबद बाजंत भेरी रहाउ।।


सहस तव नैन नन नैन है ‍तोहि कउ।

सहस मू‍रती मना एक तोही।।


सहस पद विमल रंग एक पद गंध बिनु।

सहस तव गंध इव चलत मोहि ।।


सभमहि जोति-जो‍ति है सोई,

तिसकै चानणि सभ महि चानणु होई।


गुरसाखी जोति परगुट होई।

जो तिसु भावै सु आरती होई ।।


हर‍ि चरण कमल मकरंद लोभित मनो,

अ‍नदिनी मोहि आहि पिआसा।


कृपा जलु देहि नानक सारिंग,

कउ होई जाते तेरे नामि वासा।।

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