Monday, August 22, 2016

50.....शनिवार व्रत की आरती












शनिवार व्रत की आरती

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।

वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥


पहली आरती प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश नख उदर विदारे॥


दूसरी आरती वामन सेवा।

बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥


तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।

सहसबाहु के भुजा उखारे॥


चौथी आरती असुर संहारे।

भक्त विभीषण लंक पधारे॥


पांचवीं आरती कंस पछारे।

गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥


तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।

हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥

51..... हे शारदे मां....मां सरस्वती की आरती








मां सरस्वती की आरती

हे शारदे मां, हे शारदे मां अज्ञानता से हमें तार दे मां


तू स्वर की देवी है संगीत तुझसे,

हर शब्द तेरा है हर गीत तुझसे,

हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे,

तेरी शरण हम, हमें प्यार दे मां

52.....शिवजी की आरती : ॐ जय गंगाधर









शिवजी की आरती : ॐ जय गंगाधर

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥


कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।

गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥


कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।

रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥


तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।

तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥


क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥


बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।

किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥


धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।

क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥


रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।

चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥


तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।

अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥


कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।

त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥


सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।

डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥


मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।

वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥


सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।

इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥


शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।

नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥


अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।

अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥


ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।

रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥


संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।

शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

53.....श्री सोमवार की आरती







श्री सोमवार की आरती

आरती करत जनक कर जोरे।

बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥


जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए।

सब भूपन के गर्व मिटाए॥


तोरि पिनाक किए दुइ खंडा।

रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥


आई सिय लिए संग सहेली।

हरषि निरख वरमाला मेली॥


गज मोतियन के चौक पुराए।

कनक कलश भरि मंगल गाए॥


कंचन थार कपूर की बाती।

सुर नर मुनि जन आए बराती॥


फिरत भांवरी बाजा बाजे।

सिया सहित रघुबीर विराजे॥


धनि-धनि राम लखन दोउ भाई।

धनि दशरथ कौशल्या माई॥


राजा दशरथ जनक विदेही।

भरत शत्रुघन परम सनेही॥


मिथिलापुर में बजत बधाई।

दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥


54.....रविवार आरती





रविवार आरती

कहुं लगि आरती दास करेंगे,

सकल जगत जाकि जोति विराजे।

सात समुद्र जाके चरण बसे,

काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।


कोटि भानु जाके नख की शोभा,

कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम।

भार अठारह रामा बलि जाके,

कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।


छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,

कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।

‍अमित कोटि जाके बाजा बाजें,

कहा भयो झनकारा करे हो राम।


चार वेद जाके मुख की शोभा,

कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।

शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,

नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।


हिम मंदार जाके पवन झकोरें,

कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।

लख चौरासी बन्ध छुड़ाए,

केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।


55.....श्री मंगलवार की आरती










श्री मंगलवार की आरती

आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।

जाके बल से गिरिवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके।


अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई।

दे वीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाई।


लंका सी कोट समुद्र सी खाई, जात पवन सुत बार न लाई।

लंका जारि असुर सब मारे, राजा राम के काज संवारे।


लक्ष्मण मूर्छित परे धरनि पे, आनि संजीवन प्राण उबारे।

पैठि पाताल तोरि यम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे।


बाएं भुजा सब असुर संहारे, दाहिनी भुजा सब सन्त उबारे।

आरती करत सकल सुर नर नारी, जय जय जय हनुमान उचारी।


कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजनी माई।

जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।

लंका विध्वंस किसो रघुराई, तुलसीदस स्वामी कीर्ति गाई।


56.....श्री बृहस्पतिवार की आरती
     





श्री बृहस्पतिवार की आरती

जय-जय आरती राम तुम्हारी,

राम दयालु भक्त हितकारी।


जनहित प्रगटे हरि ब्रजधारी,

जन प्रह्लाद, प्रतिज्ञा पाली।


द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो,

गज के काज पयादे धायो।


दस सिर बीस भुज तोरे,

तैंतीस कोटि देव बंदि छोरे


छत्र लिए सिर लक्ष्मण भ्राता,

आरती करत कौशल्या माता।


शुक्र शारद नारद मुनि ध्यावें,

भरत शत्रुघ्न चंवर ढुरावैं।


राम के चरण गहे महावीरा,

ध्रुव प्रह्लाद बालिसुत वीरा।


लंका जीती अवध हर‍ि आए,

सब संतन मिली मंगल गाए।


सीता सहित सिंहासन बैठे,

रामानंद स्वामी आरती गाए।


57.....बुधवार की आरती










बुधवार की आरती

आरती युगल किशोर की कीजै,

तन-मन-धन, न्योछावर कीजै। टेक।


गौर श्याम सुख निरखत रीझै,

हरि को स्वरूप नयन भरी पीजै।


रवि शशि कोटि बदन की शोभा।

ताहि निरिख मेरो मन लोभा।


ओढ़े नील पीत पट सारी,

कुंज बिहारी गिरवर धारी।


फूलन की सेज फूलन की माला,

रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।


मोर-मुकुट मुरली कर सोहे,

नटवर कला देखि मन मोहे।


कंचन थार कपूर की बाती,

हरि आए निर्मल भई छाती।


श्री पुरुषोत्तम गिरवरधारी,

आरती करें सकल ब्रजनारी।


नंदनंदन ब्रजभान किशोरी,

परमानंद स्वामी अविचल जोरी।


58.....श्री शुक्रवार की आरती










श्री शुक्रवार की आरती

आरती लक्ष्मण बालजती की,

असुर संहारन प्राणपति की। टेक।


जगमग ज्योत अवधपुरी राजे,

शेषाचल पे आप बिराजै।


घंटा ताल पखावज बाजै,

कोटि देव मुनि आरती साजै।


क्रीट मुकुट कर धनुष विराजै,

तीन लोक जाकी शोभा राजै।


कंचन थार कपूर सुहाई,

आरती करत सुमित्रा माई।


आरती कीजै हरि की तैसी,

ध्रुव प्रह्लाद वि‍भीषण जैसी।


प्रेम मगन होय आरती गावैं,

बसि बैकुंठ बहुरि नहिं आवै।


भक्ति हेतु लाड़ लड़वै,

जब घनश्याम परम पद पावै।


59.....भैरव आरती









भैरव आरती

भगवान श्री कालभैरव की आरती


जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।


तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।


वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।

महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।


तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।

चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।


तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।

कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।


पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।

बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।


बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।

कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।

60.....श्री गुरुनानक देवजी की आरती











श्री गुरुनानक देवजी की आरती

गगन में थालु रवि चंदु दीपक।

बने तारिका मण्डल जनक मोती।।


धूपमल आनलो पवणु चवरो करे।

सगल बनराई फूलंत जोति ।।


कैसी आरती होई भवखंडना तेरी आरती।

अनहता सबद बाजंत भेरी रहाउ।।


सहस तव नैन नन नैन है ‍तोहि कउ।

सहस मू‍रती मना एक तोही।।


सहस पद विमल रंग एक पद गंध बिनु।

सहस तव गंध इव चलत मोहि ।।


सभमहि जोति-जो‍ति है सोई,

तिसकै चानणि सभ महि चानणु होई।


गुरसाखी जोति परगुट होई।

जो तिसु भावै सु आरती होई ।।


हर‍ि चरण कमल मकरंद लोभित मनो,

अ‍नदिनी मोहि आहि पिआसा।


कृपा जलु देहि नानक सारिंग,

कउ होई जाते तेरे नामि वासा।।

Sunday, August 21, 2016

31.....जय मंगला गौरी माता(Aarti mangla gouri ki)

 









मां मंगला गौरी की आरती(Aarti mangla gouri ki)


जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

32.....पंचमुखी हनुमान आरती(panch mukhi balaji)

   






पंचमुखी हनुमान आरती(panch mukhi balaji)

 श्री नारायण जी व्यास कृत
प्रस्तुति :राजशेखर व्यास
'श्री पंचमुखी महाभगवद्धनुमदारती'
1.

जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।
प्रथमहि वानर वदन विराजे।।2।।
छबि बल काम कोट तंहराजे।।2।।
पशुपति शंभु भवेश समाना।।1।।

जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।
अतुलित बल तनु तेज विराजे।।2।।
रवि शशि कोट तेज छवि राजे।।2।।
रघुवर भक्त लसत तपखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

अञ्जनि पुत्र पवन सुत राजे।।2।।
महिमा शेष कोटि कहि राजे।।2।।
रघुवर लक्ष्मण करत बखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

दिग मंडल यश वृन्द विराजे।।2।।
अद्भुत रूप राम वर काजे।।2।।
तनुधर पंचमुखी हनुमाना।।3।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

भक्त शिरोमणि राज विराजे।।2।।
भक्त हृदय मानस वर राजे।।2।।
ईश्वर अव्यय आद्य समाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

2

दूसर मुख नरहरी1 विराजे।।2।।
शोभा धाम भक्त किय राजे।।2।।
अनुपम ब्रह्मरूप भगवाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

1. सिंह,

3.

तीसर तनखग`1 राज विराजे।।2।।
महिमा वेद बखानत राजे।।2।।
हनुमत अच्युत हरि सुखखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

4.

सूर्यरूप वाराह`2 विराजे।।2।।
वेद तत्व परमेश्वर राजे।।2।।
जय दाता भिलषित वर दाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

5.

ऊर्ध्व हयानन3 राज विराजे।।2।।
सद्ज्ञानाग्र वरद विभुराजे।।2।।
धन्य-धन्य दरशन भगवाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

सर्वाभरण विचित्र विराजे।।2।।
कुण्डल मुकुट विभूषण राजे।।2।।
दशकर पंकज आयुध माना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

दिव्य वदनतिथि नयन विराजे।।2।।
शब सुन्दर आसन विधि राजे।।2।।
युगल चरण नखद्युति हरखाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

महाराज शुभ धाम विराजे।।2।।
रोम-रोम रघुराज विराजे।।2।।
मनहर सुखकर गात निधाना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

जय दायक वरदायक माना।।1।।
जय-जय पंचमुखी हनुमाना।।3।।

1. गरूड़, 2. शूकर, 3. अश्व

6.

।। कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्र हारम् ।।

।। सदा वसंतं हृदयार विन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि ।।1।।

।। श्री पंचवक्त्रं रघुराज दूतम् ।।
वैदेहि भक्तं कपिराज मित्रम् ।।

।। सदा वसन्तं प्रभुलक्ष्मणाग्रे।।
कपिं च सीताप्त वरं नमामि ।।2।।

।। श्रीराम दूतं करुणावतारम् ।।
।। संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् ।।

।। सदा वसन्तं प्रभुलक्ष्मणाग्रे।।
।। कपि प्रभक्तया साहितं नमामि ।।3।।

।। त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।।
।। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।।

।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।।
।। त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।4।।

।। कायेन वाचा मनसोन्द्रियैर्वा ।।
।। बुध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावात् ।।

।। करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।।
।। नारायणायेति समर्पयामि ।।5।।

।। ''जय-2 जय-2 राजा राम'' ।।
।। ''पतित पावन सीताराम'' ।।5।।

''आरार्तिकं समर्पयामि''
शीतलीकरणम।।
असिक्तोद्धरणम्।।

33.....मां नर्मदा की आरती (maa narmada)
   









मां नर्मदाजी की पावन आरती

ॐ जय जगदानन्दी, मैया जय आनंद कन्दी।
ब्रह्मा हरिहर शंकर, रेवा शिव हर‍ि शंकर रुद्रौ पालन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (1)

देवी नारद सारद तुम वरदायक, अभिनव पदण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि...
शारद पदवाचन्ती। ॐ जय जगदानन्दी

देवी धूमक वाहन राजत, वीणा वाद्यन्ती।
झुमकत-झुमकत-झुमकत, झननन झमकत रमती राजन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (2)

देवी बाजत ताल मृदंगा, सुर मण्डल रमती।
तोड़ीतान-तोड़ीतान-तोड़ीतान, तुरड़ड़ रमती सुरवन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (3)

देवी सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर, सेवत रेवा शंकर तुम भट मेटन्ती। ॐ जय जगदानन्दी (4)

मैयाजी को कंचन थार विराजत, अगर कपूर बाती।
अमर कंठ में विराजत घाटन घाट बिराजत, कोटि रतन ज्योति। ॐ जय जगदानन्दी (5)

मैयाजी की आरती निशदिन पढ़ गा‍वरि, हो रेवा जुग-जुग नरगावे भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍ि नंद स्वामी मनवांछित पावे। ॐ जय जगदानन्दी (6)

34.....जय जय तुलसी माता (tulshi mata aarti)
   











तुलसी माता की आरती (tulshi mata aarti)

सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।

बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।

35.....महावीर स्वामी की आरती (mahaveer swami aarti)
   











महावीर स्वामी की आरती (mahaveer swami aarti)

जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥ ॥ ओम जय .....॥



सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ॥1 ओम जय .....॥

आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥2 ओम जय .....॥

जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।
हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ॥3 ओम जय .....॥

इह विधि चांदनपुर में अतिशय दरशायौ।
ग्वाल मनोरथ पूर्‌यो दूध गाय पायौ ॥4 ओम जय .....॥

प्राणदान मन्त्री को तुमने प्रभु दीना।
मन्दिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥5 ।ओम जय .....॥

जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ॥6 ओम जय .....॥

जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवै।
होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावै ॥7 ओम जय .....॥

निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज़्योति जरै।
हरि प्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ॥8 ओम जय .....॥


36.....अहोई माता की आरती (ahoi mata aarti)

  










अहोई माता की आरती (ahoi mata aarti)

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।



ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।

माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।

श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।


37.....बाहुबली भगवान क‍ी आरती (bahubali aarti)
   







बाहुबली भगवान (bahubali bagwan) 

चंदा तू ला रे चंदनिया, सूरज तू ला रे किरणां… (2)
तारा सू जड़ी रे थारी आरती रे बाबा नैना संवारूं… (2)
थारी आरती … चंदा तू…॥

आदिनाथ का लाड़ला जी नंदा मां का जाया… (2)
राजपाट ने ठोकर मारी, छोड़ी सारी माया… (2)
बन ग्या अहिंसाधारी, बाहुबली अवतारी
तारा सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना संवारूं … चंदा तू…॥

तन पे बेला चढ़ी नाथ के, केश घोंसला बन गया… (2)
अडिग हिमालय ठाड्या तनके, टीला-टीला चमक्या… (2)
थारी तपस्या भारी, तनमन सब थापे वारी
तारां सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना संवारूं … चंदा तू…॥

जय-जय जयकारा गावें थारा, सारा ये संसारी… (2)
मुक्ति को मार्ग बतलायो, घंण-घंण ए अवतारी… (2)

‘नेमजी’ चरणों में आयो, चरणां में शीश झुकायो
जुग-जुग उतारे थारी आरती रे, रे बाबा नैना संवारूं॥

38.....भगवान आदिनाथ की आरती (aaditay nath)
   








भगवान आदिनाथ की आरती(aaditay nath)

आरती उतारूं आदिनाथ भगवान की
माता मरुदेवि पिता नाभिराय लाल की
रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी
आरती हो बाबा, आरती हो,



प्रभुजी हमसब उतारें थारी आरती
तुम धर्म धुरन्धर धारी, तुम ऋषभ प्रभु अवतारी
तुम तीन लोक के स्वामी, तुम गुण अनंत सुखकारी

इस युग के प्रथम विधाता, तुम मोक्ष मार्म के दाता
जो शरण तुम्हारी आता, वो भव सागर तिर जाता
हे… नाम हे हजारों ही गुण गान की…
तुम ज्ञान की ज्योति जमाए, तुम शिव मारग बतलाए
तुम आठो करम नशाए, तुम सिद्ध परम पद पाये

मैं मंगल दीप सजाऊं, मैं जग-मग ज्योति जलाऊं

मैं तुम चरणों में आऊं, मैं भक्ति में रम जाऊं
हे झूम-झूम-झूम नाचूं करूं आरती।
आरती उतारूं आदिनाथ भगवान की।

39.....शीतला माता की आरती (sitala mata)
     











श्री शीतला आरती (sitala mata)

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता...



रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,

ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता...



विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता...



इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता...



घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता...



ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता...



जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता...



रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता...



बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता...



शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता...



दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,

भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।

जय शीतला माता...।

40.....भगवान चित्रगुप्त की आरती (chitargupta maharaj)








भगवान चित्रगुप्त की आरती (chitargupta maharaj)

श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी।
पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥



सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे।
श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥

भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला।
शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥

अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै।
कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥

नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला।
आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा॥

भक्ति भाव से यह आरती जो कोई गावे।
मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे॥

41.....महाराजा अग्रसेन की आरती (agrasen maharaj)
     











महाराजा अग्रसेन की आरती  (agrasen maharaj)

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।।
जय श्री अग्र हरे...

आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।।
जय श्री अग्र हरे...


केसरिया ध्वज फहरे, छात्र चंवर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।।
जय श्री अग्र हरे...

अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आए!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाए।।
जय श्री अग्र हरे...

सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रुपए की रीति, प्रकट करे ममता।।
जय श्री अग्र हरे...

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।।
जय श्री अग्र हरे...

अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाए!
कहत त्रिलोक विनय से सुख सम्पत्ति पाए।।
जय श्री अग्र हरे... ।


42.....श्री परशुराम जी  (parsuram ji)

     





श्री परशुराम जी  (parsuram ji)

शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की॥

रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।

कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥

अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥



नारायण अवतार सुहावन।

प्रगट भए महि भार उतारन॥

क्रोध कुंज भव भय विराम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥



परशु चाप शर कर में राजे।

ब्रम्हसूत्र गल माल विराजे॥

मंगलमय शुभ छबि ललाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥



जननी प्रिय पितु आज्ञाकारी।

दुष्ट दलन संतन हितकारी॥

ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥



परशुराम वल्लभ यश गावे।

श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥

छहहिं चरण रति अष्ट याम की।

आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥


43.....शारदा माता की आरती (sharda mata)










शारदा माता की आरती (sharda mata)

हे शारदे! कहां तू वीणा बजा रही है।

किस मंजुज्ञान से तू जग को लुभा रही है।


किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,

विनती नहीं हमारी क्यों मात सुन रही है।


हम दीन बाल कब से विनती सुना रहे हैं,

चरणों में तेरे माता हम सिर नवा रहे हैं।


अज्ञान तुम हमारा मां शीघ्र दूर कर दे,

द्रुत ज्ञान शुभ्र हम में मां शारदे तू भर दे।


बालक सभी जगत के सुत मात है तिहारे,

प्राणों से प्रिय तुझे है हम पुत्र सब दुलारे।


हमको दयामई ले गोद में पढ़ाओ,

अमृत जगत का हमको मां शारदे पिलाओ।


ह्रदय रूपी पलक में करते है आहो जारी,

हर क्षण ढूंढते है माता तेरी सवारी।


मातेश्वरी तू सुन ले सुंदर विनय हमारी,

करके दया तू हरले बाधा जगत की सारी।


44.....श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती  (bhagwan dhanvantari)












श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती  (bhagwan dhanvantari)

जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।

जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।


तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।

देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।


आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।

सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।


भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।

आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।


तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।

असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।


हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।

वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।


धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।

रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।


45.....एकादशी की पावन आरती (eka dashi)
   


संपूर्ण साल में 24 एकादशी व्रत आते हैं। इन 24 एकादशी को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र और पुण्यदायिनी माना गया है। अधिक मास में दो एकादशी बढ़ने से यह 26 हो जाती है। सामान्यत: 24 एकादशी का महत्व है। प्रस्तुत है एकादशी की आरती। इस आरती में सभी एकादशियों के नाम शामिल है।


एकादशी की पावन आरती (eka dashi)

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।


तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।


मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।


पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।


नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।


विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।


चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।


शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।


योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।


कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।


अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।


पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।


देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।


परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।


जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।


46.....श्री बद्रीनाथजी की आरती (badrinath ji ki aarti)











श्री बद्रीनाथजी की आरती (badrinath ji ki aarti)

पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम्

निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम्।

शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम्।

जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम्।

सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम्।

श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेश्वरम्।

राजयुधिष्ठिर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्।

श्री बद्रजी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम्।

कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम् ‍।


47.....श्री केदारनाथजी की आरती (Kedarnath)








श्री केदारनाथजी की आरती (Kedarnath)

जय केदार उदार शंकर, मन भयंकर दुख हरम्,

गौरी गणपति स्कंद नंदी, श्री केदार नमाम्यहम्।


शैली सुंदर अति हिमालय, शुभ मंदिर सुंदरम्,

निकट मंदाकिनी सरस्वती जय केदार नमाम्यहम्।


उदक कुंड है अधम पावन रेतस कुंज मनोहरम्,

हंस कुंड समीप सुंदर जै केदार नमाम्यहम्।


अन्नपूर्णा सहं अर्पणा काल भैरव शोभितम्,

पंच पांडव द्रोपदी सम जै केदार नमाम्यहम्।


शिव दिगंबर भस्मधारी अर्द्धचंद्र विभुषितम्

शीश गंगा कंठ फणिपति जै केदार नमाम्यहम्।


कर त्रिशूल विशाल डमरू ज्ञान गान विशारद्‍,

मदमहेश्वर तुंग ईश्वर रूद्र कल्प गान महेश्वरम्।


पंच धन्य विशाल आलय जै केदार नमाम्यहम्,

नाथ पावन है विशालम् पुण्यप्रद हर दर्शनम्,


जय केदार उदार शंकर पाप ताप नमाम्यहम्।

48.....श्री गंगाजी की आरती (ganga maa)








श्री गंगाजी की आरती (ganga maa)

ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता।

जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।

ॐ जय गंगे माता...


चन्द्र-सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता।

शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।

ॐ जय गंगे माता...


पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।

कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।

ॐ जय गंगे माता...


एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता।

यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता।

ॐ जय गंगे माता...

49.....गंगा मैया की आरती (ganga maa)










गंगा आरती (ganga maa)
     
जय गंगा मैया मां जय सुरसरी मैया।

भवबारिधि उद्धारिणी अतिहि सुदृढ़ नैया।।


हरी पद पदम प्रसूता विमल वारिधारा।

ब्रम्हदेव भागीरथी शुचि पुण्यगारा।।


शंकर जता विहारिणी हारिणी त्रय तापा।

सागर पुत्र गन तारिणी हारिणी सकल पापा।।


गंगा-गंगा जो जन उच्चारते मुखसों।

दूर देश में स्थित भी तुरंत तरन सुखसों।।


मृत की अस्थि तनिक तुव जल धारा पावै।

सो जन पावन होकर परम धाम जावे।।


तट-तटवासी तरुवर जल थल चरप्राणी।

पक्षी-पशु पतंग गति पावे निर्वाणी।।


मातु दयामयी कीजै दीनन पद दाया।

प्रभु पद पदम मिलकर हरी लीजै माया।।



आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।

दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता।

ॐ जय गंगे माता...

ॐ जय गंगे माता...।।
 

14.....श्री दुर्गा माता की आरती(Duraga Ji ki Aarti)

श्री दुर्गा माता की आरती (Durga)            
हिन्दू धर्म में आदि शक्ति दुर्गा का स्थान सर्वोपरि माना गया है। मान्यता है कि दुर्गा जी इस भौतिक संसार में सभी सुखों की दात्री हैं। उनकी भक्ति कर भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। साथ ही साधकों को देवी दुर्गा ही साधनाएं प्रदान करती हैं। मां दुर्गा की साधना में लोग मां की आरती का भी पाठ करते हैं।


दुर्गा जी की आरती (Durga Aarti)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ।| जय अम्बे गौरी ॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को |मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको|| जय अम्बे गौरी ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे| मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे|| जय अम्बे गौरी ॥

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी| मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती| मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति|| जय अम्बे गौरी ॥

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती| मैया महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती|| जय अम्बे गौरी ॥

चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे| मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे|| जय अम्बे गौरी ॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी| मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी|| जय अम्बे गौरी ॥

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों| मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू|| जय अम्बे गौरी ॥

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता| मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता|| जय अम्बे गौरी ॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी| मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती| मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती|| बोलो जय अम्बे गौरी ॥

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे| मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे|| जय अम्बे गौरी ॥

देवी वन्दना

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||

15.....सीता जी की आरती(Sita ji ki aarti)


सीता जी की आरती (Sita ji ki aarti)            
सीता जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह भगवान श्री राम की पत्नी है। सीता जी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं। इनकी आराधना करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है तथा घर में सुख शांति रहती है। तो आइए सीता जी की आरती उतारें और उन्हें प्रसन्न करें।


सीता जी की आरती(Sita ji ki aarti)


सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती।
संगहि सुशोभित लछुमन-राम सब मिलिकय करियनु आरती।।


विपदा विनाशिनि सुखदा चराचर,सीता धिया बनि अयली सुनयना घर
मिथिला के महिमा महान...सब मिलिकय करियनु आरती।।सीता बिराजथि...


सीता सर्वेश्वरि ममता सरोवर,बायाँ कमल कर दायाँ अभय वर
सौम्या सकल गुणधाम.....सब मिलिकय करियनु आरती।। सीता बिराजथि...


रामप्रिया सर्वमंगल दायिनि,सीता सकल जगती दुःखहारिणि
करथिन सभक कल्याण...सब मिलिकय करियनु आरती।। सीता बिराजथि...


सीतारामक जोड़ी अतिभावन,नैहर सासुर कयलनि पावन
सेवक छथि हनुमान...सब मिलिकय करियनु आरती।।सीता बिराजथि...


ममतामयी माता सीता पुनीता,संतन हेतु सीता सदिखन सुनीता
धरणी-सुता सबठाम...सब मिलिकय करियनु आरती ।। सीता बिराजथि...


शुक्ल नवमी तिथि वैशाख मासे,’चंद्रमणि’ सीता उत्सव हुलासे
पायब सकल सुखधाम...सब मिलिकय करियनु आरती।।

सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती।।।

16.....संतोषी माता की आरती(Santoshi Mata Ji Ki Aarti)


संतोषी माता की आरती (Santoshi Mata Ji Ki Aarti)            
संतोषी माता हिन्दूओं की एक अहम देवी मानी जाती हैं। मान्यता है कि संतोषी माता की उपासना से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए निम्न आरती का पाठ किया जाता है।



संतोषी माता की आरती (Shri Santoshi Mata Ji Ki Aarti)

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥
जय सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥

जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥
जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥

जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥

जय मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥
जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥

जय दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए ।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥
जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥

जय शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
जय संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे ।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥

17.....श्री राधा जी की आरती(Radha ji ki aarti)


श्री राधा जी की आरती (Radha ji ki aarti)            
राधा जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू धर्म में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा जी का ही नाम लिया जाता है। कई लोग मानते हैं कि राधा जी विष्णु जी की अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। राधा-कृष्ण को शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं। इनकी भक्ति से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। तो आइए राधा कृष्ण की आरती उतारे-



श्री राधा जी की आरती (Radhaji Aarti )

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण
श्री राधा कृष्णाय नमः ..


घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा
पट पीताम्बर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण .
जुगल प्रेम रस झम झम झमकै
श्री राधा कृष्णाय नमः ..


राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण .
मंगल मूरति मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ..

18.....काली माता की आरती(Kali Mata)


काली माता की आरती (Kali Mata)            
हिंदू मान्यतानुसार काली जी का जन्म राक्षसों के विनाश के लिए हुआ था। आदि शक्ति भगवती का रूप माने जाने वाली काली माता को बल और शक्ति की देवी माना जाता है। इनकी आराधना से मनुष्य के सभी भय दूर हो जाते हैं। मां काली जी की आरती से उनकी वंदना की जाती है।





कालीमाता की आरती (Kali Mata Ji Aarti)

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन।।1।।

जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।2।।

बुद्धि विधाता तू जग माता ,मेरा कारज सिद्व रे।
चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे।।3।।

जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे।
गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरेमाता।।4।।

होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करेशुक्र सुखदाई सदा।
सहाई संत खडे जयकार करे ।।5।।

ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडेअटल सिहांसन।
बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरेवार शनिचर।।6।।

कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे।।7।।

शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे ,महिषासुर को पकड दले ।
आदित वारी आदि भवानी ,जन अपने को कष्ट हरे ।।8।।

कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे।।9।।

सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता ,जन की अर्ज कबूल करे ।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।।10

सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे।
दर्शन पावे मंगल गावे ,सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।।11।।

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे।।12।।

जय जननी जय मातु भवानी , अटल भवन मे राज्य करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे।।13।।


19.....चामुण्डा देवी की आरती(Chamunda Devi Aarti)


चामुण्डा देवी की आरती (Chamunda Devi)            
हिन्दू मान्यतानुसार देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से चामुण्डा देवी प्रमुख हैं। दुर्गा सप्तशती में चामुण्डा देवी की कथा का वर्णन किया है। मान्यता है कि चामुण्डा देवी की साधना करने से मनुष्य को परम सुख की प्राप्ति होती है। चामुण्डा देवी की साधना में दुर्गा जी या अम्बे मां की आरती या चालीसा का ही प्रयोग किया जाता है:


चामुण्डा देवी जी की आरती (Chamunda Devi Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी। निशिदिन तुमको ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥ जय अम्बे
माँग सिन्दूर विराजत, टीको, मृगमद को। उज्जवल से दोउ नयना, चन्द्रबदन नीको॥ जय अम्बे

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे। रक्त पुष्प गलमाला, कंठ हार साजे॥ जय अम्बे
हरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी।सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दु:ख हारी॥ जय अम्बे

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम जोती॥ जय अम्बे
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती। धूम्र-विलोचन नयना, निशदिन मदमाती॥ जय अम्बे

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे। मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भय दूर करे॥ जय अम्बे
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों। बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु॥ जय अम्बे
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ जय अम्बे
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे

20.....श्री सरस्वती प्रार्थना(Shri Saraswati Prarthana)


श्री सरस्वती प्रार्थना (Shri Saraswati Prarthana)            
मान्यता है कि ज्ञान की देवी श्री सरस्वती जी की अराधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। सरस्वती जी की पूजा में निम्न प्रार्थना का प्रयोग होता है:


श्री सरस्वती प्रार्थना (Shri Saraswati Prathana )

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

(जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के
फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह
धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं,
जिनके हाथ में वीणादण्ड शोभायमान है,
जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया
है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं
द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूरण जड़ता
और अज्ञान को दूर कर देने वाली
माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥)

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां
जगद्व्यापिनींवीणापुस्तकधारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं
पद्मासने संस्थिताम्वन्दे तां परमेश्वरीं
भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥

(शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्में व्याप्त,
आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं
चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली,
सभी भयों से भयदान देने वाली,
अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा,
पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली
और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली,
सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा
(सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥

21.....लक्ष्मी जी की आरती(Goddess Laxmi)

लक्ष्मी जी की आरती (Goddess Laxmi)            
धन-वैभव की देवी लक्ष्मी जी को हिन्दू धर्म में आदि शक्ति का रूप माना जाता है। विष्णुप्रिया लक्ष्मी जी की श्रद्धा पूर्वक श्री आराधना करने से मनुष्य को धन और स्मृद्धि की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी का नित ध्यान करने के लिए विभिन्न मंत्रों के साथ आरती का भी पाठ किया जाता है।





लक्ष्मीजी की आरती (Laxmi Mata Aarti)

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी |
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता |
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता |
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता|
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता|
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता |
उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता |
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...

22.....श्री राणी सतीजी की आरती(rani sati mata)

श्री राणी सतीजी की आरती (rani sati mata)            







श्री राणी ​​सतीजी की आरती (Shree Rani Satiji ki Aarti)

ॐ जय श्री राणी सती माता , मैया जय राणी सती माता ,
अपने भक्त जनन की दूर करन विपत्ती ||
अवनि अननंतर ज्योति अखंडीत , मंडितचहुँक कुंभा
दुर्जन दलन खडग की विद्युतसम प्रतिभा ||

मरकत मणि मंदिर अतिमंजुल , शोभा लखि न पडे,
ललित ध्वजा चहुँ ओरे , कंचन कलश धरे ||
घंटा घनन घडावल बाजे , शंख मृदुग घूरे,
किन्नर गायन करते वेद ध्वनि उचरे ||

सप्त मात्रिका करे आरती , सुरगण ध्यान धरे,
विविध प्रकार के व्यजंन , श्रीफल भेट धरे ||
संकट विकट विदारनि , नाशनि हो कुमति,
सेवक जन ह्रदय पटले , मृदूल करन सुमति,
अमल कमल दल लोचनी , मोचनी त्रय तापा ||

त्रिलोक चंद्र मैया तेरी ,शरण गहुँ माता ||
या मैया जी की आरती, प्रतिदिन जो कोई गाता,
सदन सिद्ध नव निध फल , मनवांछित पावे ||

23.....सरस्वती माता की आरती(Sraswati mata Ji ki Aarti)


सरस्वती माता की आरती (saraswati)            
मान्यता है कि ज्ञान की देवी श्री सरस्वती जी की आराधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार मं सरस्वती ना केवल ज्ञान की देवी हैं बल्कि संगीत, कला आदि की भी देवी हैं। इनकी पूजा करने से मनुष्य के जीवन से अज्ञानता का अंधेरा दूर होता है। सरस्वती जी की पूजा में निम्न आरती का प्रयोग होता है:


श्री सरस्वती आरती (Shri Saraswati Aarti)

कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
दगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
चंद्रवदनि पदमासिनी , घुति मंगलकारी | सोहें शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
बायेँ कर में वीणा ,दायें कर में माला | शीश मुकुट मणी सोहें ,गल मोतियन माला ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
देवी शरण जो आयें ,उनका उद्धार किया पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
विद्या ज्ञान प्रदायिनी , ज्ञान प्रकाश भरो | मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता | धुप ,दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता , भव से उद्धार करो ॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता | माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी ,सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥

सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
 सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥
 जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |

24.....गायत्री माता की आरती(Goddess Gayatri)


गायत्री माता की आरती (Goddess Gayatri)            
माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। माता गायत्री की पूजा में निम्न आरती का भी विशेष प्रयोग किया जाता है।



गायत्री माता की आरती (Gaytri Mata Aarti )

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री।
दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥

ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥

भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥

कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥

जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥

स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥

25.....पार्वती जी की आरती(Parvati ji ki aarti)


पार्वती जी की आरती (Parvati ji ki aarti)            
हिंदू मान्यतानुसार पार्वती जी ही देवी भगवती हैं। यह भगवान शंकर की अर्धांगिनी हैं। दुर्गा, काली आदि इन्हीं माता के रूप माने जाते हैं। पार्वती जी बड़ी दयालु, कृपालु और करुणामयी हैं। इनकी आराधना करने भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते है तथा घर में सुख और शांति का वास होता है। तो आइए देवी की आरती कर उन्हें प्रसन्न करें।




पार्वती जी की आरती(Parvati ji ki aarti)

जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता ।।

अरिकुलापदम बिनासनी जय सेवक्त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता ।।

सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा ।।

सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता ।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा ।।

सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता,
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता ।।

देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता ।।

श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता ,
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।।

26.....देवी अन्नपूर्णा की आरती(Devi annapoorna)


देवी अन्नपूर्णा की आरती (Devi annapoorna)            
देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की देवी हैं। देवी अन्नपूर्णा धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। इन्हें “अन्न की पूर्ति“ करने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा भक्तों की भूख शांत करती हैं तथा जो इनकी आराधना करता है उसके घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है।





आरती देवी अन्नपूर्णा जी की (Annapoorana Devi Aarti)

बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम...

जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम।
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम॥ बारम्बार...

प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम।
सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम॥ बारम्बार...

चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम।
चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम॥ बारम्बार...

देवि देव! दयनीय दशा में दया-दया तब नाम।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम॥ बारम्बार...

श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम॥ बारम्बार...

27.....श्री हनुमानजी की आरती(Shri Hanuman Ji ki Aarti)

  श्री हनुमानजी की आरती (Hanuman)            
हिंदू धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाने वाले हनुमान जी का स्मरण करने से सभी डर दूर हो जाते हैं। हनुमान जी की पूजा-अर्चना में हनुमान चालीसा, मंत्र और आरती का पाठ किया जाता है।


हनुमान जी की आरती (Shri Hanuman Ji Ki Aarti)

मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ||
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||

आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सिया सुधी लाये ॥

लंका सी कोट संमदर सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥

लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे | आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥

बायें भुजा असुर दल मारे | दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥

कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥

लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

28.....श्री कबीर जी की आरती (Shri Kabir Ji Ki Aarti)









श्री कबीर जी की आरती (Shri Kabir Ji Ki Aarti)

सुन संधिया तेरी देव देवाकर,अधिपति अनादि समाई |
सिंध समाधि अंतु नहीं पायलागि रहै सरनई ||
लेहु आरती हो पुरख निरंजनु,सतगुरु पूजहु भाई
ठाढ़ा ब्रह्म निगम बीचारै,अलख न लिखआ जाई ||
ततुतेल नामकीआ बाती, दीपक देह उज्यारा |
जोति लाइ जगदीश जगाया,बुझे बुझन हारा ||
पंचे सबत अनाहद बाजे,संगे सारिंग पानी |
कबीरदास तेरी आरती कीनी,निरंकार निरबानी ||
याते प्रसन्न भय हैं महामुनि,देवन के जप में सुख पावै |
यज्ञ करै इक वेद रहै भवताप हरै,मिल ध्यान लगावै ||
झालर ताल मृदंग उपंग रबा,बलीए सुरसाज मिलावै |
कित्रर गंधर्व गान करै सुर सुन्दर,पेख पुरन्दर के बली जावै |
दानति दच्छन दै कै प्रदच्छन,भाल में कुंकुम अच्छत लावै ||
होत कुलाहल देव पुरी मिल,देवन के कुल मंगल गावैँ |
हे रवि हे ससि हे करुणानिधि,मेरी अबै बिनती सुन लीजै ||
और न मांगतहूँ तुमसे कछु चाहत,हौं चित में सोई कीजे |
शस्त्रनसों अति ही रण भीतर,जूझ मरौंतउ साँचपतीजे ||
सन्त सहाई सदा जग माइ,कृपाकर स्याम इहि है बरदीजे |
पांइ गहे जबते तुमरे तबते कोउ,आंख तरे नही आन्यो ||
राम रहीम पुरान कुरान अनेक,कहै मत एक न मान्यो ||
सिमरत साससत्रबेदस बैबहु भेद,कहै सब तोहि बखान्या |
श्री असिपान कृपा तुमरी करि,मैं न कह्यो हम एक न जान्यो कह्यो||

29.....श्री झुलेलाल की आरती(ShriJhulelal Ki Aarti)








श्री झुलेलाल की आरती(ShriJhulelal Ki Aarti)

ॐ जय दूलह देवा, साईं  जय दूलह देवा |
पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा || ॐ जय…
तुहिंजे दर दे केई सजण अचनि  सवाली |
 दान वठन सभु दिलि सां कोन दिठुभ खाली || ॐ जय…
अंधड़नि  खे दिनव अखडियूँ  – दुखियनि  खे दारुं |
पाए मन जूं मुरादूं सेवक कनि थारू || ॐ जय…
फल फूलमेवा सब्जिऊ पोखनि मंझि पचिन |
तुहिजे महिर मयासा  अन्न बि आपर अपार थियनी || ॐ जय…
ज्योति जगे थी जगु में लाल तुहिंजी लाली |
अमरलाल अचु मूं वटी हे विश्व संदा वाली || ॐ जय…
जगु जा जीव सभेई पाणिअ बिन प्यासा|
जेठानंद आनंद कर, पूरन करियो आशा || ॐ जय…


30.....आरती श्री विश्वकर्मा जी की(Vishwakarma Ji Ki Aarti)
 








 आरती श्री विश्वकर्मा जी की(Vishwakarma Ji Ki Aarti)
 
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||

आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||

ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||

श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जय श्री विश्वकर्मा.
 
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||

आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||

ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||

श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जय श्री विश्वकर्मा.